Gyanvapi Mosque Case
आज ज्ञानवापी मस्जिद का 30 साल से भी ज़्यादा पुराना मामला एक बार फिर सुर्खियों में आया है. ज्ञानवापी मस्जिद जिसका दूसरा नाम है आलमगीर मस्जिद, Uttar Pradesh के Varanasi में स्थित है. कुछ लोगों का मानना है कि इस मस्जिद की जगह भगवान शिव को समर्पित Vishweshwar Mandir था जिसकी जगह मुस्लिमों ने मस्जिद बनाके ले ली है. वहीं दूसरे पक्ष यानि कि मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यहाँ कोई भी मंदिर मौजूद नहीं था और शुरू से ही यहाँ पर मस्जिद बना हुआ है.
ज्ञानवापी मस्जिद का मामला बिल्कुल अयोध्या राम मंदिर के जैसा है, बस फर्क इसमें सिर्फ इतना है कि राम मंदिर का मामला 1991 के पहले से चल रहा था और ज्ञानवापी मस्जिद का मामला 1991 से शुरू हुआ था. साथ ही अयोध्या के मामले में ये बात हर कोई जानता था कि यह भागवान श्री राम की जन्मभूमि है और सच में राम मंदिर को हटाकर मुगल शासक बाबर के द्वारा बाबरी मस्जिद का निर्माण किया गया था, लेकिन ज्ञानवापी मस्जिद के केस में तो यहाँ पर मंदिर तो था ही, लेकिन उसके साथ-साथ बगल में मस्जिद भी बना हुआ था. इसलिए आज दोनों धर्मों के बीच यह जगह चर्चा का विषय बनी हुई है.
आज ना सिर्फ हम इसके इतिहास को बारीकी से समझेंगे बल्कि इसके बारे में हर एक चीज को लेकर काफी गहराई से बात करेंगे.
क्या है पूरा इतिहास
ज्ञानवापी का इतिहास 350 साल से भी ज़्यादा पुराना है. सूत्रों के मुताबिक यह जगह हिंदुओं की है और 15वी सदी के वक्त अकबर के नवरत्नों में से एक Raja Todarmal ने इस जगह पर विश्वेश्वर मंदिर बनवाया था जो भगवान भोले नाथ को समर्पित था. लेकिन फिर 16वी शताब्दी, जिसमें मुगल इतिहास के सबसे क्रूर शासक शाहजहाँ के बेटे Aurangzeb ने इस मंदिर को बुरी तरह से तुड़वा दिया और उस जगह पर एक मस्जिद बना दी जिसको आज हम ज्ञानवापी मस्जिद के नाम से जानते हैं.
इस मस्जिद का नाम Gyanvapi Masjid इसलिए पड़ा क्योंकि मस्जिद के पास एक कुआ मौजूद था जिसे उस वक्त के लोग ज्ञानवापी कुआ (यानी कि, ज्ञान का कुआ) भी कहते थे. लेकिन आज की तारीक में इस पूरी जगह को लेकर विवाद फैला हुआ है कि ये पूरी जगह हिंदुओं की है और इसे हिंदुओं को ही सौंप देना चाहिए.
कितनी बार टूटा Kashi Vishwanath Mandir
वैसे तो ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ मंदिर एक-दूसरे से सटे हुए हैं लेकिन दोनों की दिशायें बिल्कुल अलग-अलग हैं. बात करें अगर काशी विश्वनाथ मंदिर के इतिहास की, तो 11वी सदी में जहां राजा हरिश्चंद्र ने इस मंदिर का निर्माण करवाया, तो वहीं 1194 में मोहम्मद गोरी ने इसे तुड़वाकर तहस-नहस कर दिया.
बाद में भक्तों ने इसे दोबारा बनवाया था लेकिन 1447 में जौनपुर के सुल्तान महमूद शाह ने इसे तोड़ डाला. फिर 1585 में अकबर के दरबारी राजा टोडरमल की मदद से पंडित नारायण भट्ट ने इसे फिर से खड़ा करवाया, तो वहीं 1632 में शाहजहाँ ने इसे गिरने के लिए अपनी पूरी की पूरी सेना तक भेज दी लेकिन भक्तों के भारी प्रेम ने इसे टूटने से बचा लिया.
लेकिन 1669 में इस बार भी औरंगजेब ने ही इस मंदिर को तुड़वाने के लिए आदेश दिया और इसे गिरवा दिया. औरंगजेब ने इसे तुड़वाने का फरमान जारी किया था, इसका सबूत आज भी कोलकाता की Asiatic Library में मौजूद है. औरंगजेब ने अपने पूरे शासन काल में कई हिन्दू मंदिरों को गिरवाया था, और ना जाने कितने हिंदुओं से जबरन उनका धर्म परिवर्तन भी करवाया था.
जब विवाद की हुई शुरुआत
माना जाता है कि ज्ञानवापी विवाद को लेकर पहले भी सन् 1991 में कानूनी लड़ाई लड़ी गयी है लेकिन उस वक्त इसका कोई भी समाधान नहीं निकाला गया था, इसलिए सन् 1991 से ही यह विवाद चलता आ रहा है. लेकिन आज असल विवाद की शुरुआत होती है 17 अगस्त 2021 से, जब वाराणसी शहर की 5 महिलाओं लक्ष्मी देवी, सीता साहू, राखी सिंह, रेखा पाठक और मंजू व्यास ने वाराणसी जिला न्यायलय में जाकर याचिका दर्ज करी, कि हमें ज्ञानवापी परिसर में पूजा-पाठ और दर्शन करने के लिए अनुमति दी जानी चाहिए, लेकिन वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि वो इस कानूनी लड़ाई को और आगे लेकर जायेंगे.
इसलिए हर बार की तरह इसकी सुनवाई होते-होते भी काफी समय लगा और सन् 2022 या गया. लेकिन फिर 8 अप्रैल 2022 को कोर्ट के जज ने ASI (Archaelogical Survey of India) को अनुमति दी, कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे किया जाए.जब सर्वे करने की बात हुई तो मुस्लिम पक्ष के लोग इस बात को लेकर अड़ गए कि यहाँ कोई सर्वे नहीं होना चाहिए, क्योंकि यहाँ तो शुरू से ही मस्जिद बना हुआ है. लेकिन जब एक बार कोर्ट का आदेश आ गया तो ASI ने अपना सर्वे शुरू किया और उसमे कुछ ऐसे सबूत सामने आए, कि लोग बिल्कुल भौचक्के रह गए.
जब सामने आये सबूत
2022 में ASI ने जब ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे किया और सबूत के तौर पर एएसआई को कुछ ऐसी चीज़ें मिली जिससे एक बात तो साफ हो चुकी है कि यहाँ असल में भगवान शिव का एक मंदिर मौजूद था. ASI के सर्वे के मुताबिक बताये गए सारे सबूत इस प्रकार हैं –
- उस जगह भगवान शिव की 12.8 व्यास की एक शिवलिंग मिली.
- साथ ही 32 ऐसे शिलालेख मिले हैं जो पुराने हिंदू मंदिरों के हैं.
- उन शिलालेखों पर से मस्जिद बनाते वक्त उस पर अंकित समय को मिटा दिया गया है.
- मस्जिद के कई हिस्सों में मंदिर के स्ट्रक्चर मिले हैं.
- कुछ खंभों पर से हिन्दू चिह्नों को मिटाया गया है.
ऐसे कई सारे सबूत, सर्वे के दौरान मिले हैं जो दावा करते हैं कि उस जगह मंदिर मौजूद था.
जब हिंदुओं के पक्ष में आया फैसला
बता दें कि ज्ञानवापी परिसर में मौजूद व्यास जी के तहखाने को लेकर कई सालों से कनूनी लड़ाई चलती आ रही थी जिसके फैसले में वाराणसी कोर्ट ने 31 जनवरी 2024 को हिंदुओं को ज्ञानवापी के व्यास तहखाने में पूजा-पाठ करने की अनुमति दे दी है. लेकिन इस पर मुस्लिम पक्ष ने प्लेस ऑफ वर्शिप ऐक्ट का हवाला देते बहुत आपत्ति जताई थी लेकिन कोर्ट ने उनकी इस आपत्ति को खारिज कर दिया.
और इसी के साथ जज ने आदेश दिया कि 7 दिन के अंदर व्यास जी के तहखाने की साफ सफाई हो जाए, बैरिकेडिंग हटाने की व्यवस्था की जाए और इसमें पूजा-पाठ भी शुरू की जाए. आदेश के अनुसार काशी विश्वनाथ मंदिर के पुजारियों के द्वारा यहाँ पूजा-पाठ की जाएगी.
क्या है व्यास तहखाना
अगर बात करें व्यास जी के तहखाने के इतिहास की, तो साल 1993 तक सोमनाथ व्यास जी का पूरा परिवार 200 साल से भी ज्यादा से व्यास तहखाने में पूजा-पाठ किया करता था लेकिन उसी साल यानि कि दिसम्बर 1993 के बाद से व्यास जी को उस बैरिकेट वाले क्षेत्र में जाने से पाबंधी लगा दी गई और उसमे होने वाली पूजा-पाठ को भी बंद कर दिया गया.
हिन्दू पक्ष के वकील ने कोर्ट में बताया कि जब 4 दिसम्बर 1993 को उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी की सरकार सत्ता में आई, तो जिला प्रशासन और राज्य सरकार के द्वारा बिना किसी कानून या अधिकार के उस जगह पर पूजा-पाठ को रोक दिया गया और तहखाने के दरवाजे को हटा दिया गया.
दलील में बताया गया कि व्यास तहखाने के अंदर हनुमान जी, गणेश जी, शिव जी के साथ-साथ और भी कई हिन्दू भगवान की मूर्तियाँ रखी होती थीं, और उसके अंदर कथा वगेरा भी की जाती थी. इसके सबूत के तौर पर जब ASI ने व्यास तहखाने की जांच की थी, तब उसमें से हिन्दू भगवानों की कुछ मूर्तियाँ भी मिली थीं.
कहाँ है व्यास तहखाना
असल में व्यास तहखाना दक्षिण दिशा में मस्जिद के नीचे की तरफ बना हुआ है, और बताया गया कि उसके सामने शिव जी के नंदी की मूर्ति भी बनी हुई है. साथ ही तहखाना 7 फीट ऊंचा है जो कि 900 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है.
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FAQs
Why is it called Gyanvapi ?
क्योंकि ज्ञानवापी का मतलब होता है “ज्ञान का कुआ”
Who is Fighting for Gyanvapi Mosque ?
5 महिलाएं, Laxmi Devi, Sita Sahu, Rakhi Singh, Rekha Pathak और Manju Vyas और उनके वकील.
Who Destroyed Kashi Vishwanath Temple ?
मुगल शासक Aurangzeb ने इस मंदिर को तुड़वाया था.